
ग्रह दशा / स्वास्थ्य
ज्योतिष द्वारा रोगों की पहचान व चिकित्सा ज्योतिषशास्त्र में जन्म कुंडली, वर्ष कुंडली, प्रश्न कुंडली, गोचर तथा सामूहिक शास्त्र की विधाएँ व्यक्ति के प्रारब्ध का विचार करती हैं, उसके आधार पर उसके भविष्य के सुख-दु:ख का आंकलन किया जा सकता है। चिकित्सा ज्योतिष में
इन्हीं विधाओं के सहारे रोग निर्णय करते हैं तथा उसके आधार पर उसके ज्योतिषीय कारण को दूर करने के उपाय भी किये जाते हैं। इसलिए चिकित्सा ज्योतिष को ज्योतिष द्वारा रोग निदान की विद्या भी कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे मेडिकल ऐस्ट्रॉलॉजी कहते हैं।
मन और शरीर के मध्य तारतम्य स्वास्थ्य है तथा इस तारतम्य का टूटना ही रोग है। जन्मपत्रिका में सूर्यए चन्द्रमा, लग्न की स्थिति एवं कुछ अन्य योग यह तय करते है कि हमारी जन्मजात रोग प्रतिरोधक क्षमता कैसी होगी। बृहत पाराशर होरा शास्त्र में कुछ विशेष परिस्थितियों में हुए जन्म को अशुभ जन्म माना गया है। यदि इन विशेष स्थितियों में जन्म हो तो ये जन्म पत्रिका के अन्य शुभ योगों को नष्ट कर देते हैं। अशुभ जन्म में निम्न स्थितियों का वर्णन किया गया है।
1. अमावस्या
2. कृष्ण चतुर्दशी
3. भद्रा करण
4. भाई या पिता का एक नक्षत्र
5. संक्रान्ति
6. क्रान्तिसाम्य-सूर्य और चन्द्रमा की क्रांति समान हो
7. सूर्य ग्रहण
8. चन्द्र ग्रहण
9. व्यतिपातादि दुर्योग
10. त्रिविद्य गण्डान्त
11. यमघण्ट योग
12. तिथि क्षय
13. ग्धादि योग
14. त्रिखल जन्म
15. विकृत प्रसव
16. तुला मास
17. सार्प शीर्ष-वृश्चिक संक्रांति मास में अमावस्या का जन्म हो और सूर्य-चन्द्रमा अनुराधा नक्षत्र के तीसरे या चौथे चरण में हो तो सार्प शीर्ष दोष होता है।
जीवन भय, घातक रोग, धन आदि का क्षय। जब तक शांति न हो शिवालय में घी का दीपक जलाएं।
जन्मजात रोग-प्रतिरोधात्मक क्षमता
सूर्य चन्द्रमा और लग्न जन्मपत्रिका में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए इन तीनों का बली होना अत्यंत आवश्यक है। यदि ये तीनों बली हो तो व्यक्ति आदिव्याधि से बचा रहता है। अष्टम भाव आयु का भाव है, इसलिए अष्टम भाव और अष्टमेश का भी बली होना आवश्यक है। जन्मजात रोग प्रतिरोधक क्षमता निम्न स्थितियों में अच्छी रहती है :-
1. बली लग्र एवं लग्नेश
2. लग्न एवं लग्नेश का शुभ कतृरि में होना
3. 3,6,11 में अशुभ ग्रह एवं गुलिक
4. केन्द्र-त्रिकोण में शुभ ग्रह होना
5. अष्टम भाव में शनि होना।
6. बली अष्टमेश
7. बली आत्मकारक
8. लग्न व अष्टम भाव में अधिक अष्टक वर्ग बिन्दु होना
जन्म पत्रिका में लग्र, सूर्य, चंद्र के चक्र बिंदुओ से शरीर के बाहरी, भीतरी रोग को आसानी से समझा जा सकता है। लग्र बाहर के रोगो का, तथा सूर्य भीतर के रोग, तेज, प्रकृति का तथा चंद्रमा मन उदर का प्रतिनिधी होता है। इन तीनों ग्रहों का अन्य ग्रहों से पारस्परिक संबध या शत्रुता ही शरीर के विभिन्न रोगो को जन्म देती है।
रक्तचाप के लिए चन्द्र, मंगल और शनि ग्रह को अधिक उत्तरदायी माना गया है। शनि ग्रह और साढ़े साती से व्याप्त भय तथा विनाश की चर्चा अक्सर की जाती है, हजारों उपाय भी किये जाए हैं। लेखक ने भी ऐसी ग्रह दशा से पीड़ित लोगों को रक्तचाप से ग्रसित होना बताया है। रक्तचाप की भांति मुधमेह भी आम रोग हो गया है। मानसिक तनाव और अनियमित खान-पान को इसका कारण बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बताया गया है कि सूर्य-चन्द्र द्वादश भाव में स्थित हों, राहु और सूर्य सप्तम स्थान में हों, शनि और मंगल के साथ चन्द्रमा छठे, आठवें और बारहवें स्थान में स्थित हों तो व्यक्ति नेत्रहीन होगा।
किसी भी जन्म पत्रिका का षष्ठ भाव रोग का स्थान होता है। शरीर में कब, कहां, कौन सा रोग होगा वह इसी से निर्धारित होता है। यहां पर स्थित क्रूर ग्रह पीड़ा उतपन्न करता है। उस पर यदि शुभ ग्रहो की दृष्टि न हो तो यह अधिक कष्टकारी हो जाता है। प्रश्न कुण्डली रोग के विषय में जानकारी प्राप्त करने का साधारण तरीका है |
जानिए रोग के कारक ग्रह
सूर्य के कारण- बुखार, हृदय सम्बन्धी रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द, अस्थियों में तकलीफ, पित्त दोष ये ऐसे रोग हैं जिनके कारक ग्रह सूर्य हैं |हृदय, पेट, पित्त, दांयीं आंख, घाव, जलने का घाव, गिरना, रक्त प्रवाह में बाधा आदि के लिए सूर्य उत्तरदायी होता है |।। ज्योतिष के मुताबिक सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह सूर्य है। सूर्य का सीधा असर इंसान की आंखों, हड्डियों और आत्मविश्वास पर होता है। अगर सूर्य की दशा और दिशा आपके पक्ष में न हो तो आप आंखों और हड्डियों से जुड़ी किसी बीमारी से ग्रसित हो सकते हैं। सूर्य, सिंह राशि का स्वामी है।
चन्द्रमा के कारण-सर्दी - खांसी, फेफड़ों में परेशानी, नजला, जुकाम, क्षय रोग, श्वास सम्बन्धी रोग एवं मानसिक रोगों के लिए चन्द्र उत्तरदायी होता है | |चंद्रमा को शांति का प्रतीक माना जाता है। ज्योतिषियों के मुताबिक दिमाग और खून से जुड़ी बीमारियों का संबंध चंद्रमा की दशा से है। चंद्रमा कर्क राशि का स्वामी है।
मंगल के कारण-शरीर के तरल पदार्थ, रक्त बायीं आंख, छाती, दिमागी परेशानी, महिलाओं में मासिक चक्र, सिर, जानवरों द्वारा काटना, दुर्घटना, जलना, घाव, शल्य क्रिया ऑपरेशन, उच्च रक्तचाप, गर्भपात इत्यादि के लिए मंगल उत्तरदायी होता है |।मंगल- मंगल ग्रह इंसान की ताकत और हिम्मत पर सीधा असर करता है। ज्योतिषियों के मुताबिक मंगल की दशा बिगड़ने पर इंसान की ताकत और प्रभाव में कमी आ सकती है। मंगल ग्रह वृश्चिक और मेष राशि का स्वामी है।
बुध के कारण-एलर्जी, पागलपन, हिस्टीरिया, चर्म रोग, मिर्गी एवं सन्निपात और गला, नाक, कान, फेफड़े, आवाज, बुरे सपने आदि के लिए बुध उत्तरदायी होता है |। अगर आपकी बोलचाल की क्षमता पर असर पड़े तो मतलब बुध की दशा ठीक नहीं है। ज्योतिषियों की मानें तो त्वचा से जुड़ी बीमारियां भी बुध की दशा पर निर्भर करती हैं। बुध कन्या और मिथुन राशि का स्वामी है।
गुरु के कारण -यकृत, शरीर में चर्बी, मधुमेह, शुक्र चिरकालीन बीमारियां, कान इत्यादि के लिए गुरु उत्तरदायी होता है |।
पीलिया, पेट की खराबी, गुर्दे में परेशानी, वायु विकार, मोटपा जैसे रोगों के लिए गुरू उत्तरदायी होते है |लीवर और कान से जुड़ी समस्या का सीधा संबंध बृहस्पति ग्रह से होता है। अगर बृहस्पति की दशा और दिशा आपके अनुकूल नहीं है तो लीवर और सुनने की क्षमता पर असर पड़ सकता है। बृहस्पति, धनु और मीन राशि का स्वामी है।
शुक्र के कारण-शुक्र के प्रभाव से गुप्त रोग, कमज़ोरी, प्रदर, मधुमेह,मूत्र में जलन, गुप्त रोग, आंख, आंतें, अपेंडिक्स, मधुमेह, मूत्राशय में पथरी आदि का सामना करना होता है|इंसान के काम करने की क्षमता पर सीधा असर डाल सकता है शुक्र। शुक्र की दशा ठीक न होने पर यौन रोगों से जुड़ी समस्या भी हो सकती है। शुक्र तुला और वृषभ राशि का स्वामी है।
शनि के कारण-जोड़ों में दर्द, नाड़ी सम्बन्धी दोष, गठिया, सूखा, पेट दर्द और पांव, पंजे की नसें, लसिका तंत्र, लकवा, उदासी, थकान की तकलीफ का कारण शनि उत्तरदायी होता है |। |ज्योतिषियों के मुताबिक शनि की ग्रह दशा इंसान के जीवन पर खासा असर डालती है लेकिन सेहत के हिसाब से शनि नाड़ी तंत्र को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। नस-नाड़ी से जुड़ी बीमारी शनि ग्रह की दशा ठीक नहीं होने पर हो सकती है। शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी है ।
राहु के कारण-हडि्डयां, जहर फैलना, सर्प दंश, क्रॉनिक बीमारियां, डर आदि के लिए राहु उत्तरदायी होता है |। |
केतु के कारण-हकलाना, पहचानने में दिक्कत, आंत्र, परजीवी इत्यादि के लिए केतु उत्तरदायी होता है |। |
उपचार स्थिती
प्रश्न कुण्डली में प्रथम, पंचम, सप्तम एवं अष्टम भाव में पाप ग्रह हों और चन्द्रमा कमज़ोर या पाप पीड़ित हों तो रोग का उपचार कठिन होता है जबकि चन्द्रमा बलवान हो और 1, 5, 7 एवं 8 भाव में शुभ ग्रह हों तो उपचार से रोग का ईलाज संभव हो पाता है.पत्रिका में तृतीय, षष्टम, नवम एवं एकादश भाव में शुभ ग्रह हों तो उपचार के उपरान्त रोग से मुक्ति मिलती है.सप्तम भाव में शुभ ग्रह हों और सप्तमांश बलवान हों तो रोग का निदान संभव होता है.चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह की स्थिति से ज्ञात होता है कि रोगी को दवाईयों से अपेक्षित लाभ प्राप्त होगा. इसके आलावा अलग अलग ग्रहों के उपचार के साथ साथ रोगो से बचने के लिये महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
-ऊँ नम: शिवाय मंत्र का सतत जाप करें।
-ऊँ हूँ जूँ स: इन बीज मंत्रो का चौबीसो घंटे जाप करे।
-शिव का अभिषेक करें।